याद आते हो बचपन के वो दिन,
जब हम इंतेज़ार किया करते थे गर्मियों का,
दिनों के लंबे होने का,
जब हम कुछ देर और खेला करते थे,
चिलचिलाती धूप में भी भागा करते थे,
जब खेल १० के नहीं २० ओवेरो के होते थे,
जब हम घर ६ नहीं ७ बजे आया करते थे,
आज भी जब गर्मियों का मौसम आता है,
जब दफ़्तर की खिड़की से बाहर झाँकता हुँ,
देखता हुँ उस चिलचिलाती धूप को,
मैदान में खेलते उन बच्चों को,
दिल में एक लालच सा आता है,
कुछ देर और खेल लूँ, कुछ देर और भाग लूँ,
थोड़ा और जीत लूँ, शायद थोड़ा और हार लूँ,
आज भी बहुत याद आते हैं,
वो गर्मियों के मौसम, वो बचपन के दिन.
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